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है ये गुल की और उस की आब में फ़र्क़ | शाही शायरी
hai ye gul ki aur uski aab mein farq

ग़ज़ल

है ये गुल की और उस की आब में फ़र्क़

जुरअत क़लंदर बख़्श

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है ये गुल की और उस की आब में फ़र्क़
जैसे पानी में और गुलाब में फ़र्क़

लब-ए-ख़ूबाँ कहाँ वो लाल कहाँ
है बहुत शर्बत और शराब में फ़र्क़

लाख गाली कही है कम मत दे
मैं गिनूँगा न हो हिसाब में फ़र्क़

ज़ाहिदा ज़ोहद तू पढ़ा, मैं इश्क़
है मिरी और तिरी किताब में फ़र्क़

ऐ शराबी गज़क तो करता है
कुछ तो कर दिल में और कबाब में फ़र्क़

आँख जब से खुली न देखा कुछ
ज़िंदगानी में और हुबाब में फ़र्क़

कुछ नहीं करते तुम जो शोले में
और इस रु-ए-पुर-इताब में फ़र्क़

है ज़मीं आसमान का यारो
ज़र्रे में और आफ़्ताब में फ़र्क़

क्यूँकि 'जुरअत' हो शैख़ तुझ सा कि है
पीरी और आलम-ए-शबाब में फ़र्क़