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है सोज़-ए-ग़म को गर्मी-ए-बाज़ार की तलाश | शाही शायरी
hai soz-e-gham ko garmi-e-bazar ki talash

ग़ज़ल

है सोज़-ए-ग़म को गर्मी-ए-बाज़ार की तलाश

मुनव्वर लखनवी

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है सोज़-ए-ग़म को गर्मी-ए-बाज़ार की तलाश
इस जिंस को है अपने ख़रीदार की तलाश

काफ़िर की जुस्तुजू है न दीं-दार की तलाश
है एक जज़्ब-ए-ग़म के परस्तार की तलाश

आवारगी-ए-चश्म-ए-तजस्सुस अबस नहीं
करती है अपने मरकज़-ए-दीदार की तलाश

जूया गुनाहगार है लुत्फ़-ए-करीम का
लुत्फ़-ए-करीम को है गुनहगार की तलाश

क्या जाने शाख़ शाख़ ने क्या गुल खिलाए हैं
है आशियाँ को बर्क़-ए-शरर-बार की तलाश

वारफ़्ता-ए-जुनून का है मुद्दआ' कुछ और
सहरा की जुस्तुजू है न गुलज़ार की तलाश

पुरसाँ कोई भी आज 'मुनव्वर' मिरा नहीं
मुझ ग़म-ज़दा को है किसी ग़म-ख़्वार की तलाश