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है जब तक दश्त-पैमाई सलामत | शाही शायरी
hai jab tak dasht-paimai salamat

ग़ज़ल

है जब तक दश्त-पैमाई सलामत

हिजाब अब्बासी

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है जब तक दश्त-पैमाई सलामत
रहेगी आबला-पाई सलामत

रहे जब तक ये बीनाई सलामत
हमारी ख़ामा-फ़रसाई सलामत

बहुत सँवरेंगे संग ओ सर के रिश्ते
जुनूँ की कार-फ़रमाई सलामत

बहुत हैरान हैं आईना-ख़ाने
तिरे क़ामत की ज़ेबाई सलामत

सभी हाथों में ले कर संग आए
ख़िरद की जल्वा-आराई सलामत

बहुत देखे बहार-आमेज़ मंज़र
तिरी यादों की रानाई सलामत

हिजाब उस ने किया आसूदा-ए-ग़म
ये अंदाज़-ए-मसीहाई सलामत