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है हमारी दोस्ती का यही मुख़्तसर फ़साना | शाही शायरी
hai hamari dosti ka yahi muKHtasar fasana

ग़ज़ल

है हमारी दोस्ती का यही मुख़्तसर फ़साना

जे. पी. सईद

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है हमारी दोस्ती का यही मुख़्तसर फ़साना
तिरा शौक़-ए-ख़ुद-नुमाई मिरा ज़ौक़-ए-आशिक़ाना

है हमारी ज़िंदगी पर किसी और का तसल्लुत
न तो ये तिरा ज़माना न तो ये मिरा ज़माना

तिरी बे-रुख़ी का शिकवा तिरी दोस्ती का दा'वा
मुझे डर है बन न जाए मिरी क़ैद का बहाना

ये अजीब कश्मकश है कि हैं हम बहम मुक़ाबिल
मिरा दिल तिरा निशाना तिरा दिल मिरा निशाना

है ये आदमी पतंगा इसी शम-ए-आरज़ू का
कभी आरज़ू हक़ीक़त कभी आरज़ू फ़साना

तिरी चाह थी जो दिल में वही रूह थी बदन में
ये इधर हुई रवाना वो उधर हुई रवाना

मिरा दिल जलाने वाले ज़रा इस पे ग़ौर कर ले
मिरा दिल नहीं है ज़ालिम है ये तेरा आशियाना