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है दिल में जुनूँ-ख़ेज़ परस्तिश का इरादा | शाही शायरी
hai dil mein junun-KHez parastish ka irada

ग़ज़ल

है दिल में जुनूँ-ख़ेज़ परस्तिश का इरादा

रफ़ीक़ ख़याल

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है दिल में जुनूँ-ख़ेज़ परस्तिश का इरादा
ऐसे में मुनासिब नहीं रंजिश का इरादा

जलने को है तय्यार मता-ए-दिल-ओ-जाँ फिर
अफ़्सोस मगर सर्द है आतिश का इरादा

मिट्टी का घरौंदा बड़ी मुश्किल से बना है
ऐ काश बदल दे कोई बारिश का इरादा

यूँ खुल के सर-ए-आम न मिल मुझ से मिरे दोस्त
दुनिया में है ज़िंदा अभी साज़िश का इरादा

कश्कोल मोहब्बत की तलब फिर भड़क उट्ठी
देखा जो ब-ज़िद उस में नवाज़िश का इरादा

उस ने बड़ा मोहतात रवय्या रखा फिर भी
लहजे से झलकता रहा ख़्वाहिश का इरादा

उस दिल का इलाक़ा सही मेरे लिए ममनूअ'
बदला न ब-हर-हाल रिहाइश का इरादा

है म'अरका-आरा जो 'ख़याल' आज ब-ज़ाहिर
रखता है पस-ए-तैश गुज़ारिश का इरादा