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है आसेबों का साया मैं जहाँ हूँ | शाही शायरी
hai aasebon ka saya main jahan hun

ग़ज़ल

है आसेबों का साया मैं जहाँ हूँ

परवीन शीर

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है आसेबों का साया मैं जहाँ हूँ
शब-ए-दश्त-ए-बला में बे-अमाँ हूँ

हवा की ज़द पे जैसे शम्अ' की लौ
मैं अपने हौसलों का इम्तिहाँ हूँ

चराग़ाँ सा है दरवाज़े पे लेकिन
मैं अंदर से कोई तीरा मकाँ हूँ

वो बादल था हवा का हम-सफ़र था
मैं तिश्ना-काम फ़स्ल-ए-राइगाँ हूँ

सुतूँ कच्चे थे बारिश सह न पाए
सुलगती धूप में बे-साएबाँ हूँ

पता मेरा अब उस को क्या मिलेगा
निशाँ होते हुए भी बे-निशाँ हूँ