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हाँ कहीं जुगनू चमकता था चलो वापस चलो | शाही शायरी
han kahin jugnu chamakta tha chalo wapas chalo

ग़ज़ल

हाँ कहीं जुगनू चमकता था चलो वापस चलो

सलीम शहज़ाद

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हाँ कहीं जुगनू चमकता था चलो वापस चलो
इन सुरँगों में अंधेरा है तो हो वापस चलो

हम को हर अंधे की फ़हम-ए-मंज़िलत का है शुऊर
कह रहा है क़ाफ़िले वालों से जो वापस चलो

उस तरफ़ के क़हक़हों का राज़ कुछ खुलता नहीं
इस लिए अपने ही मातम-ज़ार को वापस चलो

वापसी के रास्ते मसदूद हो जाने से क़ब्ल
किस लिए तुम हो असीर-ए-गोमगो वापस चलो

कब तक इन आवारा मौजों का तमाशा देखना
गिन चुके हो साअतों के तार तो वापस चलो

खेल का स्टेज ख़ाली है तो किस का इंतिज़ार
जाने कब का हो चुका है ख़त्म शो वापस चलो

पेशतर इस के कि अपनी दास्तानें भूल जाओ
शहर-ए-अफ़्सूँ में भटकते रावियो वापस चलो

आओ अब चल कर ज़रा घर में जलाते हैं चराग़
चादर-ए-ज़ुल्मत उतरने को है सो वापस चलो