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हाल-ए-दिल वो पूछने आने लगे | शाही शायरी
haal-e-dil wo puchhne aane lage

ग़ज़ल

हाल-ए-दिल वो पूछने आने लगे

उज़ैर रहमान

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हाल-ए-दिल वो पूछने आने लगे
मरने वाले ज़िंदगी पाने लगे

कोई बतलाए मिले कैसे क़रार
हर तरफ़ जब तुम नज़र आने लगे

छेड़ा क्या अफ़्साना तुम ने प्यार का
हम भी क़िस्से कल के दोहराने लगे

हुस्न का चाहा रक़ीबों से बयाँ
बोलते क्या ख़ाक हकलाने लगे

है मरज़ आँखों को लाहक़ जानिए
जब बुराई बस नज़र आने लगे

नींद पर भी लग गईं पाबंदियाँ
जब से ख़्वाबों में हुज़ूर आने लगे

रातें तो हो जाती थीं अक्सर गराँ
दिन के हिस्से में भी ग़म आने लगे

इश्क़ है जानम तिजारत ये नहीं
फ़ाएदे का क्यूँ ख़याल आने लगे

शायद हो जाए फ़लक अब मेहरबाँ
सोच कर हम दिल को बहलाने लगे