गुज़िश्ता अहल-ए-सफ़र को जहाँ सुकून मिला
न जाने क्यूँ हमें उन मंज़िलों पे ख़ून मिला
ख़राब वक़्त है अब फ़ासला ही बेहतर है
कभी मिलेंगे जो माहौल पुर-सुकून मिला
कभी ज़माने से माँगा था पैकर-ए-शीरीं
तराशने को हमें कोह-ए-बे-सुतून मिला
वो 'राम' नख़्ल-ए-वफ़ा है मैं बर्ग-ए-आवारा
उसे जुमूद मिला है मुझे जुनून मिला

ग़ज़ल
गुज़िश्ता अहल-ए-सफ़र को जहाँ सुकून मिला
राम रियाज़