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गुज़िश्ता अहल-ए-सफ़र को जहाँ सुकून मिला | शाही शायरी
guzishta ahl-e-safar ko jahan sukun mila

ग़ज़ल

गुज़िश्ता अहल-ए-सफ़र को जहाँ सुकून मिला

राम रियाज़

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गुज़िश्ता अहल-ए-सफ़र को जहाँ सुकून मिला
न जाने क्यूँ हमें उन मंज़िलों पे ख़ून मिला

ख़राब वक़्त है अब फ़ासला ही बेहतर है
कभी मिलेंगे जो माहौल पुर-सुकून मिला

कभी ज़माने से माँगा था पैकर-ए-शीरीं
तराशने को हमें कोह-ए-बे-सुतून मिला

वो 'राम' नख़्ल-ए-वफ़ा है मैं बर्ग-ए-आवारा
उसे जुमूद मिला है मुझे जुनून मिला