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गुलशन-ए-इश्क़ में ग़ुंचा भी कली होता है | शाही शायरी
gulshan-e-ishq mein ghuncha bhi kali hota hai

ग़ज़ल

गुलशन-ए-इश्क़ में ग़ुंचा भी कली होता है

खालिद इरफ़ान

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गुलशन-ए-इश्क़ में ग़ुंचा भी कली होता है
नाम आशिक़ का भी माशूक़-अली होता है

ख़ान कहता है वहाँ मूँग-फली होता है
फूल होती है पिशावर में कली होता है

जब वो पढ़ती है तरन्नुम से ग़ज़ल का मतला
उस की आँखों में भी ईता-ए-जली होता है

एक बीवी पे जो करता है क़नाअत ता-उम्र
वो तो शौहर नहीं होता है वली होता है

सास ने आज खिलाई है जलेबी मुझ को
नीम का पेड़ भी मिस्री की डली होता है

मार्शल-ला का मैं हामी तो नहीं हूँ लेकिन
दौर-ए-जम्हूर भी अब बंद गली होता है

जिस के लहजे में हो शाइस्तगी-ए-तंज़-ए-लतीफ़
ऐसा शाएर ही ज़रीफ़-ए-अज़ली होता है