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गुलों को सहन-ए-चमन में क़रार क्या होगा | शाही शायरी
gulon ko sahn-e-chaman mein qarar kya hoga

ग़ज़ल

गुलों को सहन-ए-चमन में क़रार क्या होगा

मसूद मैकश मुरादाबादी

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गुलों को सहन-ए-चमन में क़रार क्या होगा
ख़िज़ाँ के दौर में शुक्र-ए-बहार क्या होगा

ये शब उम्मीद-ए-सहर में गुज़ार दी लेकिन
सहर से ता-बा-शब इंतिज़ार क्या होगा

हवा-ए-दश्त जो दीवाना-वार गुज़री है
न जाने आज लब-ए-जूएबार क्या होगा

जिसे अलम भी मोहब्बत में रास आ न सका
किसी ख़ुशी का उसे ए'तिबार क्या होगा

बजा नसीहत-ए-तर्क-ए-शराब भी नासेह
इलाज-ए-आमद-ए-अब्र-ए-बहार क्या होगा

शिकार-ए-काकुल-ओ-रुख़ हो चुका दिल-ए-'मैकश'
शिकार-ए-गर्दिश-ए-लैल-ओ-नहार क्या होगा