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गुल को ख़ुशबू चाँद को उस्लूब-ए-ताबानी मिले | शाही शायरी
gul ko KHushbu chand ko uslub-e-tabani mile

ग़ज़ल

गुल को ख़ुशबू चाँद को उस्लूब-ए-ताबानी मिले

क़य्यूम शाकरी

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गुल को ख़ुशबू चाँद को उस्लूब-ए-ताबानी मिले
मेरे जज़्बे से जहाँ को हुस्न-ए-लाफ़ानी मिले

उजली उजली सी फ़ज़ा में रंग बिखरे प्यार का
हुस्न-कारों को मिरा एहसास-ए-ताबानी मिले

देव-क़ामत पैकरों से दिल मिरा घबरा गया
अब तो यारब आम सी इक शक्ल-ए-इंसानी मिले

इस हुजूम-ए-रंज-ओ-ग़म में इक ज़रा सा ज़हर भी
ज़िंदगी को इस तरह से शायद आसानी मिले

अल्लाह अल्लाह ज़िंदगी में इंकिसारी का ये रूप
अहल-ए-नख़वत को भी हम बा-ख़ंदा पेशानी मिले

वक़्त के कतबे पे 'शाकिर' नाम हो कंदा तिरा
अहल-ए-दुनिया को कोई तहरीर लाफ़ानी मिले