गिरते हुए बदन का नगर छोड़ जाऊँगा
घबरा के दस्तकों से ये घर छोड़ जाऊँगा
मैं ऐन ज़िंदगी हूँ ठहरना नहीं मुझे
सब मंज़रों को मिस्ल-ए-नज़र छोड़ जाऊँगा
ख़ुद ख़ाक हो के गर्द-ए-सफ़र में रहूँगा और
उन बस्तियों में ज़ौक़-ए-सफ़र छोड़ जाऊँगा
होगा न सोगवार मिरे वास्ते कोई
जलता हुआ दिया हूँ सहर छोड़ जाऊँगा
हस्ती मिरी अदम ही सही सूरत-ए-'सहाब'
मैं सीपियों में आब-ए-गुहर छोड़ जाऊँगा

ग़ज़ल
गिरते हुए बदन का नगर छोड़ जाऊँगा
ख़ुर्शीद रिज़वी