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घड़ी घड़ी उसे रोको घड़ी घड़ी समझाओ | शाही शायरी
ghaDi ghaDi use roko ghaDi ghaDi samjhao

ग़ज़ल

घड़ी घड़ी उसे रोको घड़ी घड़ी समझाओ

आफ़ताब हुसैन

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घड़ी घड़ी उसे रोको घड़ी घड़ी समझाओ
मगर ये दिल है कि कुछ देखता है आओ न ताओ

अब उस के दर्द को दिल में लिए तड़पते हो
कहा था किस ने कि उस ख़ुश-नज़र से आँख मिलाओ

अजब तरह के झमेले हैं इश्क़ में साहब
बरत सको तो हो मा'लूम आटे दाल का भाव

चलो वो अगला सा जोश-ओ-ख़रोश तो न रहा
मगर ये क्या कि मिलो और हाथ भी न मिलाओ

नज़र है शर्त हक़ीक़त को देखने के लिए
कि हर बिगाड़ में होते हैं सौ तरह के बनाव

हमारे हाल का क्या है सुधर ही जाएगा
मगर ये बात कि तुम अपनी उलझी लट सुलझाओ

हमारी उम्र भी गुज़री है इस ख़राबे में
कहाँ के होते हैं ये लोग अहल-ए-इश्क़ हटाओ

कभी खिलो भी ये क्या है कि 'आफ़्ताब-हुसैन'
पड़े रहो यूँही घर पर किसी के आओ न जाओ