ग़ौर से मुझ को देखता है क्या
मेरे चेहरे पे कुछ लिखा है क्या
मेरी आँखों में झाँकता है क्या
तुझ को इन में ही डूबना है क्या
मेरे होंटों को छू लिया उस ने
क्या बताऊँ मुझे हुआ है क्या
ऐ कबूतर ज़रा बता मुझ को
उन की छत पर भी बैठता है क्या
पर कटे पंछियों से पूछते हो
तुम में उड़ने का हौसला है क्या
फ़ासले इश्क़ में ही होते हैं
तुझ को ये भी नहीं पता है क्या
मेरी दुनिया में बस तू ही तू है
अब बता तेरा फ़ैसला है क्या
प्यार से माँग ली है जान उस ने
मेरे हिस्से में अब बचा है क्या
चल कहीं दूर चलते हैं 'नादिम'
घर को जाने में भी रखा है क्या
ग़ज़ल
ग़ौर से मुझ को देखता है क्या
नादिम नदीम