ग़ौर करो तो चेहरा चेहरा ओढ़े गहरे गहरे रंग
जग-एल्बम में भरे पड़े हैं अंधे गूँगे बहरे रंग
कल शब इस धरती पर मैं था या फिर चाँद सितारे थे
इक मंज़र था तन्हा मैं और चारों ओर सुनहरे रंग
तेरी याद भी धुल जाएगी इस मौसम की बारिश में
बरखा-रुत में दीवारों पर आख़िर कब तक ठहरे रंग
वहशी किरनें फूल बदन से महक चुराने आती हैं
जब तक फूल के दम में दम है तन्हा देगा पहरे रंग
पूरा चाँद और हरा समुंदर लहरों का वो रक़्स हुआ
मौज मौज नश्शे में 'राशिद' लहर लहर में लहरे रंग

ग़ज़ल
ग़ौर करो तो चेहरा चेहरा ओढ़े गहरे गहरे रंग
राशिद मतीन