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गरमी-ए-पहलू-ए-दिलदार ने सोने न दिया | शाही शायरी
garmi-e-pahlu-e-dildar ne sone na diya

ग़ज़ल

गरमी-ए-पहलू-ए-दिलदार ने सोने न दिया

शहबाज़ नदीम ज़ियाई

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गरमी-ए-पहलू-ए-दिलदार ने सोने न दिया
मुझ को रंगीनी-ए-अफ़कार ने सोने न दिया

यूँही तकता रहा तारों को सहर होने तक
रात भर दीदा-ए-बेदार ने सोने न दिया

रात भर लज़्ज़त-ए-क़ुर्बत से रहा महव-ए-कलाम
रात भर मुझ को मिरे यार ने सोने न दिया

रात भर जागा किए पलकें न झपकीं हम ने
रात भर इश्क़ के आज़ार ने सोने न दिया

रात भर दिल के धड़कने की सदा आती रही
रात भर साया-ए-दीवार ने सोने न दिया

रात भर याद-ए-गुज़िश्ता ने सताया मुझ को
रात भर चश्म-ए-गुहर-बार ने सोने न दिया

रात भर खुल न सका मुझ पे किसी तौर 'नदीम'
रात भर हुस्न-ए-पुर-असरार ने सोने न दिया