गरमी-ए-पहलू-ए-दिलदार ने सोने न दिया
मुझ को रंगीनी-ए-अफ़कार ने सोने न दिया
यूँही तकता रहा तारों को सहर होने तक
रात भर दीदा-ए-बेदार ने सोने न दिया
रात भर लज़्ज़त-ए-क़ुर्बत से रहा महव-ए-कलाम
रात भर मुझ को मिरे यार ने सोने न दिया
रात भर जागा किए पलकें न झपकीं हम ने
रात भर इश्क़ के आज़ार ने सोने न दिया
रात भर दिल के धड़कने की सदा आती रही
रात भर साया-ए-दीवार ने सोने न दिया
रात भर याद-ए-गुज़िश्ता ने सताया मुझ को
रात भर चश्म-ए-गुहर-बार ने सोने न दिया
रात भर खुल न सका मुझ पे किसी तौर 'नदीम'
रात भर हुस्न-ए-पुर-असरार ने सोने न दिया
ग़ज़ल
गरमी-ए-पहलू-ए-दिलदार ने सोने न दिया
शहबाज़ नदीम ज़ियाई