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गर्द-बाद-ए-शरार हैं हम लोग | शाही शायरी
gard-baad-e-sharar hain hum log

ग़ज़ल

गर्द-बाद-ए-शरार हैं हम लोग

अमीर हम्ज़ा साक़िब

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गर्द-बाद-ए-शरार हैं हम लोग
किस के जी का ग़ुबार हैं हम लोग

आ कि हासिल हो नाज़-ए-इज़्ज़-ओ-शरफ़
आ तिरी रहगुज़ार हैं हम लोग

बे-कजावा है नाक़ा-ए-दुनिया
और ज़ख़्मी सवार हैं हम लोग

जब्र के बाब में फ़रोज़ाँ हैं
हासिल-ए-इख़्तियार हैं हम लोग

फिर बदन में थकन की गर्द लिए
फिर लब-ए-जू-ए-बार हैं हम लोग

बाद-ए-सरसर कभी तो बाद-ए-सुमूम
मौजा-ए-ख़ाकसार हैं हम लोग

चश्म-ए-नर्गिस मगर अलील भी है
किस लिए बे-कनार हैं हम लोग