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गरचे बादल पानी बरसाता हुआ घर घर फिरा | शाही शायरी
garche baadal pani barsata hua ghar ghar phira

ग़ज़ल

गरचे बादल पानी बरसाता हुआ घर घर फिरा

शुजा ख़ावर

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गरचे बादल पानी बरसाता हुआ घर घर फिरा
फिर भी बारिश की दुआ करता रहा इक सर-फिरा

एक उम्मी को मिली अपने ही दिल में काएनात
और मैं आलिम तलाश-ए-ज़ात में दर दर फिरा

हम ज़माने से फिरे ये तो बजा है साहिबो
उस को तो लाओ जो हम से आश्ना हो कर फिरा

उस की ख़ुश-फ़हमी ने कल बस मार ही डाला हमें
तुझ को देखा और दरवाज़े से चारा-गर फिरा

आब वो आई जो चेहरे पर अदू के बा'द-ए-वस्ल
और पानी वो जो मेरी आरज़ूओं पर फिरा