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गँवा के दिल सा गुहर दर्द-ए-सर ख़रीद लिया | शाही शायरी
ganwa ke dil sa guhar dard-e-sar KHarid liya

ग़ज़ल

गँवा के दिल सा गुहर दर्द-ए-सर ख़रीद लिया

आरज़ू लखनवी

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गँवा के दिल सा गुहर दर्द-ए-सर ख़रीद लिया
बहुत गराँ था ये सौदा मगर ख़रीद लिया

अमीन-ए-इश्क़ ने दिल-ए-बे-ख़तर ख़रीद लिया
ये आइना म-ए-आईना-गर ख़रीद लिया

ग़ज़ब था इश्क़ का सौदा कि अहल-ए-होश ने भी
जो कुछ नसीब था सब बेच कर ख़रीद लिया

भला हो ग़म की तुनुक-ज़र्फ़ी-ए-तबीअ'त का
अगरचे बात गँवा दी असर ख़रीद लिया

रह-ए-रज़ा में है ख़ूनी-कफ़न से शान-ए-शहीद
तो जान बेच के रख़्त-ए-सफ़र ख़रीद लिया

जो दिल कहे न कहूँ वो जो तू कहे वो कहूँ
तो क्या ज़मीर भी ऐ हीला-गर ख़रीद लिया

तलाश-ए-ऐश में ऐ 'आरज़ू' है रंज ही रंज
सितम-नसीब ये क्या दर्द-ए-सर ख़रीद लिया