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ग़म्ज़ा पैकान हुआ जाता है | शाही शायरी
ghamza paikan hua jata hai

ग़ज़ल

ग़म्ज़ा पैकान हुआ जाता है

बेदम शाह वारसी

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ग़म्ज़ा पैकान हुआ जाता है
दिल का अरमान हुआ जाता है

देख कर उलझी हुई ज़ुल्फ़ उन की
दिल परेशान हुआ जाता है

तेरी वहशत की बदौलत ऐ दिल
घर बयाबान हुआ जाता है

साज़-ओ-सामाँ का न होना ही मुझे
साज़-ओ-सामान हुआ जाता है

मुश्किल आसान हुई जाती है
क्यूँ परेशान हुआ जाता है

दिल से जाते हैं मिरे सब्र-ओ-क़रार
घर ये वीरान हुआ जाता है

दिल की रग रग में समा कर 'बेदम'
दर्द तो जान हुआ जाता है