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ग़मों से यूँ वो फ़रार इख़्तियार करता था | शाही शायरी
ghamon se yun wo farar iKHtiyar karta tha

ग़ज़ल

ग़मों से यूँ वो फ़रार इख़्तियार करता था

अज़हर इनायती

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ग़मों से यूँ वो फ़रार इख़्तियार करता था
फ़ज़ा में उड़ते परिंदे शुमार करता था

बयान करता था दरिया के पार के क़िस्से
ये और बात वो दरिया न पार करता था

बिछड़ के एक ही बस्ती में दोनों ज़िंदा हैं
मैं उस से इश्क़ तो वो मुझ से प्यार करता था

यूँही था शहर की शख़्सिय्यतों को रंज उस से
कि वो ज़िदें भी बड़ी पुर-वक़ार करता था

कल अपनी जान को दिन में बचा नहीं पाया
वो आदमी कि जो आहट पे वार करता था

वो जिस के सेहन में कोई गुलाब खिल न सका
तमाम शहर के बच्चों से प्यार करता था

सदाक़तें थीं मिरी बंदगी में जब 'अज़हर'
हिफ़ाज़तें मिरी परवरदिगार करता था