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ग़मों ने इस तरह घेरा कभी नहीं होगा | शाही शायरी
ghamon ne is tarah ghera kabhi nahin hoga

ग़ज़ल

ग़मों ने इस तरह घेरा कभी नहीं होगा

मुश्ताक़ नक़वी

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ग़मों ने इस तरह घेरा कभी नहीं होगा
ये लग रहा था सवेरा कभी नहीं होगा

उन्हें का ज़िक्र है दिन रात उन की बातें हैं
तुम्हारा दिल है ये मेरा कभी नहीं होगा

तमाम दौलत-ए-कौन-ओ-मकाँ मिले तो क्या
तो जिस का हो गया, तेरा कभी नहीं होगा

हमारी सन लो हमें देख लो कि फिर शायद
इधर फ़क़ीर का फेरा कभी नहीं होगा

दिया है अपना लहू इस क़दर चराग़ों को
हमारे बअ'द अंधेरा कभी नहीं होगा