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ग़म-ज़दा हैं मुब्तला-ए-दर्द हैं नाशाद हैं | शाही शायरी
gham-zada hain mubtala-e-dard hain nashad hain

ग़ज़ल

ग़म-ज़दा हैं मुब्तला-ए-दर्द हैं नाशाद हैं

अख़्तर अंसारी

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ग़म-ज़दा हैं मुब्तला-ए-दर्द हैं नाशाद हैं
हम किसी अफ़्साना-ए-ग़मनाक के अफ़राद हैं

गर्दिश-ए-अफ़्लाक के हाथों बहुत बर्बाद हैं
हम लब-ए-अय्याम पर इक दुख भरी फ़रियाद हैं

हाफ़िज़े पर इशरतों के नक़्श बाक़ी हैं अभी
तू ने जो सदमे सहे ऐ दिल तुझे भी याद हैं

रात भर कहते हैं तारे दिल से रूदाद-ए-शबाब
इन को मेरी वो शबाब-अफ़रोज़ रातें याद हैं

'अख़्तर'-ए-ना-शाद की परछाईं से बचते रहें
जो ज़माने में शगुफ़्ता-ख़ातिर ओ दिल-ए-शाद हैं