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ग़म से बहल रहे हैं आप आप बहुत अजीब हैं | शाही शायरी
gham se bahal rahe hain aap aap bahut ajib hain

ग़ज़ल

ग़म से बहल रहे हैं आप आप बहुत अजीब हैं

पीरज़ादा क़ासीम

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ग़म से बहल रहे हैं आप आप बहुत अजीब हैं
दर्द में ढल रहे हैं आप आप बहुत अजीब हैं

साया-ए-वस्ल कब से है आप का मुंतज़िर मगर
हिज्र में जल रहे हैं आप आप बहुत अजीब हैं

अपने ख़िलाफ़ फ़ैसला ख़ुद ही लिखा है आप ने
हाथ भी मल रहे हैं आप आप बहुत अजीब हैं

वक़्त ने आरज़ू की लौ देर हुई बुझा भी दी
अब भी पिघल रहे हैं आप आप बहुत अजीब हैं

दायरा-वार ही तो हैं इश्क़ के रास्ते तमाम
राह बदल रहे हैं आप आप बहुत अजीब हैं

अपनी तलाश का सफ़र ख़त्म भी कीजिए कभी
ख़्वाब में चल रहे हैं आप आप बहुत अजीब हैं