ग़म का दरिया सूख न जाए उस की रवानी कम न पड़े 
ख़ून-ए-जिगर भी शामिल कर लूँ आँख में पानी कम न पड़े 
उस के बदन की ख़ुश्बू का कुछ तोड़ निकालो आज की रात 
और कोई ख़ुश्बू ले आओ रात-की-रानी कम न पड़े 
साल-दो-साल की बात नहीं है उम्र बहुत दरकार है हाँ 
सोच रहा हूँ इश्क़ की ख़ातिर अहद-ए-जवानी कम पड़े 
आईने का दिल नहीं टूटे उस का भरम आबाद रहे 
चेहरे पर कुछ और बढ़ाओ ये हैरानी कम न पड़े 
कार-ए-जहाँ में अपनी वुसअ'त से ये ख़ुद हैरान सा है 
आदम-ज़ाद को मेरे मौला आलम-ए-फ़ानी कम न पड़े 
दर्द के सारे ही क़िस्सों की याद-दहानी कर लेना 
हिज्र की रात बहुत लम्बी है एक कहानी कम न पड़े 
राज़ बहुत से ऐसे भी हैं जो उस को मा'लूम नहीं 
मेरे यार की सोहबत तुझ को दुश्मन-ए-जानी कम न पड़े
        ग़ज़ल
ग़म का दरिया सूख न जाए उस की रवानी कम न पड़े
ज़िया ज़मीर

