ग़म-ए-हयात को लिक्खा किताब की मानिंद
और एक नाम कि है इंतिसाब की मानिंद
न जाने कह दिया किस बे-ख़ुदी में साक़ी ने
सुरूर-ए-तिश्ना-लबी है शराब की मानिंद
बहुत क़रीब से देखा तो इंकिशाफ़ हुआ
वो ख़ार ख़ार है शाख़-ए-गुलाब की मानिंद
मिरा सवाल कि किस ने मुझे तबाह किया
तिरा सुकूत मुकम्मल जवाब की मानिंद
मैं अपनी आँखों को रखता हूँ बा-वज़ू हर-दम
कि तेरा ज़िक्र मुक़द्दस किताब की मानिंद
मुझे अज़ीज़ हैं ख़्वाबों की किर्चियाँ भी 'सबा'
किसी निगाह में होंगी अज़ाब की मानिंद

ग़ज़ल
ग़म-ए-हयात को लिक्खा किताब की मानिंद
कामरान ग़नी सबा