गली का पत्थर था मुझ में आया बिगाड़ ऐसा
मैं ठोकरें खा के हो गया हूँ पहाड़ ऐसा
ख़ुदा ख़बर दिल में कोई आसेब है कि इस में
कोई न आया गया पड़ा है उजाड़ ऐसा
न सर उठा पाए कोई भौंचाल मुझ में ऐ वक़्त
मैं नर्म मिट्टी हूँ सो मुझे तू लताड़ ऐसा
चहार जानिब पड़े हैं पुर्ज़े निगाह-ओ-दिल के
हमारा इस इश्क़ ने किया है कबाड़ ऐसा
मैं भूल बैठा हूँ हँसना 'फ़रताश' भूल बैठा
हुआ है ख़ुशियों का बंद मुझ पर किवाड़ ऐसा
ग़ज़ल
गली का पत्थर था मुझ में आया बिगाड़ ऐसा
फ़रताश सय्यद