ग़ैरों के साथ गाते जाते हो
चुटकियों में हमें उड़ाते हो
कौन उस्ताद मिल गया कामिल
किस से ज़रबें ये सीख आते हो
नक़्श किस का उपर उठा मुँह पर
अब तो नक़्शा नया बिठाते हो
कभू सो रहते हो दुपट्टा तान
कभी इक तान मार जाते हो
कभू करते हो झाँझ आ हम से
कभी झाँझ और दफ़ बजाते हो
कभू लड़ने का तार है और गाह
तार तम्बूर पर चढ़ाते हो
ताली दय थपड़ी मार और लड़-भिड़
थाप मुर्दंग पर लगाते हो
होती है जब कहें से दूत-दपक
क्यूँ हमें आ के खड़खड़ाते हो
वादा टलता है जब तू राह में देख
बुत्ती दे मुझ को गिड़गिड़ाते हो
'अज़फ़री' दोस्त को रुला पियारे
दुश्मनों के तईं हँसाते हो
ग़ज़ल
ग़ैरों के साथ गाते जाते हो
मिर्ज़ा अज़फ़री