फ़ुर्सत में रहा करते हैं फ़ुर्सत से ज़्यादा
मसरूफ़ हैं हम लोग ज़रूरत से ज़्यादा
मिलता है सुकूँ मुझ को क़नाअत से ज़्यादा
मसरूर हूँ मैं अपनी मसर्रत से ज़्यादा
चलता ही नहीं दानिश ओ हिकमत से कोई काम
बनती है यहाँ बात हिमाक़त से ज़्यादा
तन्हा मैं हिरासाँ नहीं इस कार-ए-जुनूँ में
सहरा है परेशाँ मिरी वहशत से ज़्यादा
अब कोई भी सच्चाई मिरे साथ नहीं है
यानी मैं गुनहगार हूँ तोहमत से ज़्यादा
इस रेग-ए-रवाँ को मैं समेटूँ भी कहाँ तक
बिखरा है वो हर-सू मिरी वुसअत से ज़्यादा
रौशन है बहुत झूट मिरे अहद में 'अख़्तर'
अफ़्साना मुनव्वर है हक़ीक़त से ज़्यादा
ग़ज़ल
फ़ुर्सत में रहा करते हैं फ़ुर्सत से ज़्यादा
सुल्तान अख़्तर