फ़ितरत को ख़िरद के रू-ब-रू कर 
तस्ख़ीर-ए-मक़ाम-ए-रंग-ओ-बू कर 
तू अपनी ख़ुदी को खो चुका है 
खोई हुई शय की जुस्तुजू कर 
तारों की फ़ज़ा है बे-कराना 
तू भी ये मक़ाम-ए-आरज़ू कर 
उर्यां हैं तिरे चमन की हूरें 
चाक-ए-गुल-ओ-लाला को रफ़ू कर 
बे-ज़ौक़ नहीं अगरचे फ़ितरत 
जो उस से न हो सका वो तू कर
        ग़ज़ल
फ़ितरत को ख़िरद के रू-ब-रू कर
अल्लामा इक़बाल

