EN اردو
फ़सील-ए-दर्द को मैं मिस्मार करने वाली हूँ | शाही शायरी
fasil-e-dard ko main mismar karne wali hun

ग़ज़ल

फ़सील-ए-दर्द को मैं मिस्मार करने वाली हूँ

सिया सचदेव

;

फ़सील-ए-दर्द को मिस्मार करने वाली हूँ
मैं आँसुओं की नदी पार करने वाली हूँ

मुझे ख़ुदा की रज़ा से है वास्ता हर दम
मैं ख़ुद-नुमाई से इंकार करने वाली हूँ

ये उस की मर्ज़ी कि इक़रार वो करे न करे
मैं आज ख़्वाहिश-ए-इज़हार करने वाली हूँ

वो जिस ने की है हमेशा मुख़ालिफ़त मेरी
उसी को अपना मदद-गार करने वाली हूँ

वफ़ा की राह में ख़ुद को तबाह कर के मैं
तमाम शहर को बेदार करने वाली हूँ

कोई न डाले निगाह-ए-ग़लत कि मैं अपने
निहत्ते हाथों को तलवार करने वाली हूँ