EN اردو
फ़साना अब कोई अंजाम पाना चाहता है | शाही शायरी
fasana ab koi anjam pana chahta hai

ग़ज़ल

फ़साना अब कोई अंजाम पाना चाहता है

हुमैरा राहत

;

फ़साना अब कोई अंजाम पाना चाहता है
तअल्लुक़ टूटने को इक बहाना चाहता है

जहाँ इक शख़्स भी मिलता नहीं है चाहने से
वहाँ ये दिल हथेली पर ज़माना चाहता है

मुझे समझा रही है आँख की तहरीर उस की
वो आधे रास्ते से लौट जाना चाहता है

ये लाज़िम है कि आँखें दान कर दे इश्क़ को वो
जो अपने ख़्वाब की ताबीर पाना चाहता है

बहुत उकता गया है बे-सुकूनी से वो अपनी
समुंदर झील के नज़दीक आना चाहता है

वो मुझ को आज़माता ही रहा है ज़िंदगी भर
मगर ये दिल अब उस को आज़माना चाहता है

उसे भी ज़िंदगी करनी पड़ेगी 'मीर' जैसी
सुख़न से गर कोई रिश्ता निभाना चाहता है