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फ़र्त-ए-अलम से आह किए जा रहा हूँ मैं | शाही शायरी
fart-e-alam se aah kiye ja raha hun main

ग़ज़ल

फ़र्त-ए-अलम से आह किए जा रहा हूँ मैं

जगदीश सहाय सक्सेना

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फ़र्त-ए-अलम से आह किए जा रहा हूँ मैं
ऐ इश्क़ क्या गुनाह किए जा रहा हूँ मैं

मक़्बूल होंगे दहर में दाग़-ए-जिगर मिरे
उन को चराग़-ए-राह किए जा रहा हूँ मैं

रंज ओ अलम का लुत्फ़ उठाने के वास्ते
राहत से भी निबाह किए जा रहा हूँ मैं

गुलज़ार-ए-काम-रानी ओ दुनिया-ए-आरज़ू
आमाल से तबाह किए जा रहा हूँ मैं

मुझ को अता हुआ था दिल-ए-आइना-जमाल
सद हैफ़ उसे सियाह किए जा रहा हूँ मैं

ग़म कह रहा है कौन है मुझे से सिवा अज़ीज़
सब के दिलों में राह किए जा रहा हूँ मैं