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फ़रियाद कि वो शोख़ सितमगार न आया | शाही शायरी
fariyaad ki wo shoKH sitamgar na aaya

ग़ज़ल

फ़रियाद कि वो शोख़ सितमगार न आया

उबैदुल्लाह ख़ाँ मुब्तला

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फ़रियाद कि वो शोख़ सितमगार न आया
मुझ क़त्ल कूँ ले हाथ में तलवार न आया

मैं पंबा-नमन नर्म किया बिस्तर-ए-तन कूँ
वो पिउ क़दम धरने को यकबार न आया

छुट आह पिछे कौन मिरे दर्द का अहवाल
मुझ दुख की ख़बर लेने वो ग़म-ख़्वार न आया

जाने है वफ़ादार मुझे दिल मने लेकिन
दहशत से रक़ीबाँ की वो नाचार न आया

आराम गया भूक नहीं नींद गई भूल
अफ़्सोस कि वो ताला'-ए-बेदार न आया

बुलबुल की नमन आस है नित बास की मुझ कूँ
सद-हैफ़ मिरे पास वो गुलज़ार न आया

बाज़ार-ए-सुख़न गर्म किया उस की सिफ़त सूँ
मुझ शेर का हैहात ख़रीदार न आया

लिख बार सहा बाग़ में माली का तहूरा
पर सैर कतीं वो गुल-ए-बे-ए-ख़ार न आया

ऐ 'मुबतला' ये बात लिखा दिल के उपर मैं
इक रोज़ मुझ आग़ोश में वो यार न आया