फ़रेब-ए-अक़्ल में मजनून-ए-इश्क़ आ न सका
भुला दिया उसे आँखों ने दिल भुला न सका
फ़रोग़-ए-हुस्न से रातें वो जगमगा न सका
हरीम-ए-इश्क़ में जो शम-ए-दिल जला न सका
भुला दिया हो कभी याद कर के मुमकिन है
मगर मैं भूल के तुझ को कभी भुला न सका
न दिल मिला न मिलीं दिल की लज़्ज़तें उस को
जो तेरे दर्द-ए-मोहब्बत को दिल बना न सका
दिए जवाब मिरी मासियत के रहमत से
हम उस को भूल गए वो हमें भुला न सका
मुझे जुनून-ए-मोहब्बत ने उस जहाँ में रखा
कि जिस जहाँ में कोई इंक़लाब आ न सका
गुज़र गया है मोहब्बत में इक वो आलम भी
कि मुद्दतों मुझे तू ख़ुद भी याद आ न सका
तजल्लियाँ उसे अपनी नज़र जब आने लगीं
निगाह-ए-इश्क़ में फिर हुस्न भी समा न सका
उधर करिश्मा-ए-हुस्न उन की पाक-दामानी
इधर ये हाल कि ईमाँ कोई बचा न सका
क़ुयूद-ए-इश्क़ से शाहिद गुज़र गया हो कोई
हुदूद-ए-हुस्न से लेकिन निकल के जा न सका
न बन गया हो तिरा इश्क़-ए-इज़्तिराब कहीं
तसल्लियों से तिरी इज़्तिराब जा न सका
गुज़र गई थी तिरे साथ ज़िंदगी कुछ दिन
फिर उस के बा'द मज़ा ज़िंदगी का आ न सका
हमेशा दैर-ओ-हरम में हैं शोरिशें जिस से
वो इंक़लाब कभी मय-कदे में आ न सका
तमाम-उम्र को जब हो गए थे वो मेरे
तमाम-उम्र कभी फिर वो वक़्त आ न सका
अजीब चीज़ है हस्ती की नीस्ती 'बिस्मिल'
कि जो यहाँ से गया फिर कभी वो आ न सका
ग़ज़ल
फ़रेब-ए-अक़्ल में मजनून-ए-इश्क़ आ न सका
बिस्मिल सईदी