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फ़न जो नादार तक नहीं पहुँचा | शाही शायरी
fan jo nadar tak nahin pahuncha

ग़ज़ल

फ़न जो नादार तक नहीं पहुँचा

साहिर लुधियानवी

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फ़न जो नादार तक नहीं पहुँचा
अभी मेयार तक नहीं पहुँचा

उस ने बर-वक़्त बे-रुख़ी बरती
शौक़ आज़ार तक नहीं पहुँचा

अक्स-ए-मय हो कि जल्वा-ए-गुल हो
रंग-ए-रुख़्सार तक नहीं पहुँचा

हर्फ़-ए-इंकार सर बुलंद रहा
ज़ोफ़-ए-इक़रार तक नहीं पहुँचा

हुक्म-ए-सरकार की पहुँच मत पूछ
अहल-ए-सरकार तक नहीं पहुँचा

अद्ल-गाहें तो दूर की शय हैं
क़त्ल अख़बार तक नहीं पहुँचा

इन्क़िलाबात-ए-दहर की बुनियाद
हक़ जो हक़दार तक नहीं पहुँचा

वो मसीहा-नफ़स नहीं जिस का
सिलसिला-दार तक नहीं पहुँचा