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एक तुम्हारे प्यार की ख़ातिर जग के दुख अपनाए थे | शाही शायरी
ek tumhaare pyar ki KHatir jag ke dukh apnae the

ग़ज़ल

एक तुम्हारे प्यार की ख़ातिर जग के दुख अपनाए थे

शाहिद इश्क़ी

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एक तुम्हारे प्यार की ख़ातिर जग के दुख अपनाए थे
हम ने अपने एक दीप से कितने दीप जलाए थे

सिर्फ़ जवानी के कुछ दिन ही उम्र का हासिल होते हैं
और जवानी के ये दिन भी हम को रास न आए थे

हुस्न को हम ने अमर कहा था प्यार को सच्चा जाना था
एक जवानी के कस-बल पर सारे सच झुटलाए थे

उस के बिना जो उम्र गुज़ारी बे-मसरफ़ सी लगती थी
उस की गली में उम्र गँवा कर भी हम ही पछताए थे

बे-मेहरी की तोहमत भी है मेहर-ओ-मुरव्वत वालों पर
उसी हवा ने मुरझाए हैं जिस ने फूल खिलाए थे

ग़र्क़-ए-बादा-ए-नाब हुए वो चाँद से चेहरे फूल से जिस्म
तुम ने जिन की याद में 'इश्क़ी' जाम कभी टकराए थे