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एक तो दुनिया का कारोबार है | शाही शायरी
ek to duniya ka karobar hai

ग़ज़ल

एक तो दुनिया का कारोबार है

सलीम फ़राज़

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एक तो दुनिया का कारोबार है
इश्क़ का उस पर अलग आज़ार है

कौन इस जा साहब-ए-किरदार है
हर कोई बस ग़ाज़ी-ए-गुफ़्तार है

सुबह तक उठती रही आह-ओ-फ़ुग़ाँ
कौन मुझ में शाम से बेदार है

अहल-ए-दिल आए यहाँ ताख़ीर से
अब कहाँ वो गर्मी-ए-बाज़ार है

शोर में डूबा हुआ है घर तमाम
और सन्नाटा पस-ए-दीवार है

मैं हुआ बे-लुत्फ़ उस के क़ुर्ब से
वो भी मेरी शक्ल से बेज़ार है

सारे दुश्मन हो गए ज़ेर-ए-नगीं
ख़ुद से अब वो बर-सर-ए-पैकार है

हर क़दम पर लड़खड़ाता हूँ 'सलीम'
रास्ता शायद बहुत हमवार है