एक काफ़िर-अदा ने लूट लिया
उन की शर्म-ओ-हया ने लूट लिया
इक बुत-ए-बेवफ़ा ने लूट लिया
मुझ को तेरे ख़ुदा ने लूट लिया
आश्नाई बुतों से कर बैठे
आश्ना-ए-जफ़ा ने लूट लिया
हम ये समझे कि मरहम-ए-ग़म है
दर्द बन कर दवा ने लूट लिया
उन के मस्त-ए-ख़िराम ने मारा
उन की तर्ज़-ए-अदा ने लूट लिया
हुस्न-ए-यकता की रहज़नी तौबा
इक फ़रेब-ए-नवा ने लूट लिया
होश-ओ-ईमान-ओ-दीन क्या कहिए
शोख़ी-ए-नक़श-ए-पा ने लूट लिया
रहबरी थी कि रहज़नी तौबा
हम को फ़रमाँ-रवा ने लूट लिया
एक शोला-नज़र ने क़त्ल किया
एक रंगीं-क़बा ने लूट लिया
हम को ये भी ख़बर नहीं 'गुलज़ार'
कब बुत-ए-बेवफ़ा ने लूट लिया
हाए वो ज़ुल्फ़-ए-मुश्क-बू तौबा
हम को बाद-ए-सबा ने लूट लिया
उन को 'गुलज़ार' मैं ख़ुदा समझा
मुझ को मेरे ख़ुदा ने लूट लिया
ग़ज़ल
एक काफ़िर-अदा ने लूट लिया
गुलज़ार देहलवी