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एहसास तो मुझी पे कर रही है | शाही शायरी
ehsas to mujhi pe kar rahi hai

ग़ज़ल

एहसास तो मुझी पे कर रही है

शाहिदा हसन

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एहसास तो मुझी पे कर रही है
छूकर जो हवा गुज़र रही है

जिस ने मुझे शाख़ पर न चाहा
ख़ुशबू मिरी उस के घर रही है

बे-सम्ती-ए-अश्क की नदामत
इस बार भी हम-सफ़र रही है

ठहरा है वो जब से रहगुज़र में
मिट्टी मिरी रक़्स कर रही है

चुपके से घड़ी घड़ी मुसाफ़िरत की
दहलीज़ पे पाँव धर रही है

तारे भी नज़र न आएँ घर में
आँख ऐसी घड़ी से डर रही है

टूटा हुआ अक्स ले के लड़की
आईने में फिर सँवर रही है