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एहसास-ए-आशिक़ी ने बेगाना कर दिया है | शाही शायरी
ehsas-e-ashiqi ne begana kar diya hai

ग़ज़ल

एहसास-ए-आशिक़ी ने बेगाना कर दिया है

जिगर मुरादाबादी

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एहसास-ए-आशिक़ी ने बेगाना कर दिया है
यूँ भी किसी ने अक्सर दीवाना कर दिया है

अब क्या उम्मीद रक्खूँ ऐ हुस्न-ए-यार तुझ से
तू ने तो मुस्कुरा कर दीवाना कर दिया है

तुझ से ख़ुदा ही समझे तू ने किसी को ऐ दिल
मुझ से भी कुछ ज़ियादा दीवाना कर दिया है

फिर उस के देखने को आँखें तरस रही हैं
यादश ब-ख़ैर जिस ने दीवाना कर दिया है

मुझ को जुनूँ से अपने शिकवा जो है तो ये है
मेरी मोहब्बतों को अफ़्साना कर दिया है

ऐ हुस्न-ए-रोज़ अफ़्ज़ूँ उमरत दराज़ बाद
दोनों जहाँ से मुझ को बेगाना कर दिया है

जब दिल में आ गया है इक जुम्बिश-ए-नज़र ने
दीवाना कह दिया दीवाना कर दिया है

मुझ से ही पूछते हैं ये शोख़ियाँ तो देखो
मेरे 'जिगर' को किस ने दीवाना कर दिया है