दूर सहरा की कड़ी धूप में छाँव जैसा 
वो तो लगता था मुझे मेरी दुआओं जैसा 
इक रियासत थी मिरे पास नवाबों जैसी 
अब तिरे शहर में फिरता हूँ गदाओं जैसा 
अब उसे ढूँढता फिरता हूँ बयाबानों में 
जो मिरे पास से गुज़रा था हवाओं जैसा 
तू न था पास तो रूठी थीं बहारें मुझ से 
जैसे मौसम हो मिरे साथ ख़िज़ाओं जैसा 
रुख़-ए-रौशन से निकलती थीं शुआएँ 'ओवैस' 
उस की ज़ुल्फ़ों में नज़ारा था घटाओं जैसा
        ग़ज़ल
दूर सहरा की कड़ी धूप में छाँव जैसा
ओवैस उल हसन खान

