दुर्द पी लेते हैं और दाग़ पचा जाते हैं
याँ बला-नोश हैं जो आए चढ़ा जाते हैं
देख कर तुम को कहीं दूर गए हम लेकिन
टुक ठहर जाओ तो फिर आप में आ जाते हैं
जब तलक पाँव में चलने की है ताक़त बाक़ी
हाल-ए-दिल आ के कभू तुझ को दिखा जाते हैं
इश्क़ का क्यूँकि बुताँ से करे इख़्फ़ा कोई
ढब से नज़रों में ये काफ़िर वहीं पा जाते हैं
तरह सोज़न की जो हैं रिश्ता-ए-उल्फ़त में फँसे
जिस तरफ़ सैर करें रू-ब-क़ज़ा जाते हैं
कौन हो ग़ुंचा-सिफ़त अपने सबा का मरहून
जैसे तंग आए थे वैसे ही ख़फ़ा जाते हैं
रहियो हुशियार तू लप-झप से बुताँ की 'क़ाएम'
बात की बात में वाँ दिल को उड़ा जाते हैं
ग़ज़ल
दुर्द पी लेते हैं और दाग़ पचा जाते हैं
क़ाएम चाँदपुरी