दुनिया में क़स्र-ओ-ऐवाँ बे-फ़ाएदा बनाया
उक़्बा इन्हें बनाई मुनइ'म तो क्या बनाया
जो उन्सुरी घरौंदा पे चौखटा बनाया
इक दम में वो बशर का बिगड़ा बना बनाया
ज़ुल्फ़ों में ताइर-ए-जाँ जिस ने फँसा बनाया
तन को क़फ़स रगों को इक जाल सा बनाया
सोज़-ए-ग़म-ओ-अलम से बह जाऊँ शम्मा-साँ जो
ऐ शो'ला-रू मुझे भी क्या मोम का बनाया
नक़्शे पे खिंच सका जब मानी से दिल-जलों का
जिस जा मकान-ए-दिल था आतिश-कदा बनाया
बहर-ए-जहाँ में जिस दम पहुँची नुमूद-ए-इंसाँ
पानी ने सर उठा के इक बुलबुला बनाया
पहना कफ़न उतारा हस्ती के पैरहन को
फेंका लिबास-ए-कोहना जामा नया बनाया
ख़ालिक़ ने जब कहा ख़ल्क़ अबरू के बिस्मिलों का
गर्दन मिरी बनाई ख़ंजर तिरा बनाया
चल कर सबा की सूरत ख़ंदाँ किया गुलों को
ग़ुंचों का मुँह बिगाड़ा जब मुँह ज़रा बनाया
शीशागरी पे नाज़ाँ बे-कार शीशा-गर हैं
कोई भी दिल किसी का टूटा हुआ बनाया
आहों के कूदकों ने छलनी किया यहाँ तक
सक़्फ़-ए-फ़लक को छत्ता ज़ंबूर का बनाया
शान-ए-ख़ुदा अयाँ है हर बुत से मय-कदे में
का'बे में तुम ने जा कर ऐ 'शाद' क्या बनाया
ग़ज़ल
दुनिया में क़स्र-ओ-ऐवाँ बे-फ़ाएदा बनाया
शाद लखनवी