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दुनिया को जब नज़दीकी से देखा है | शाही शायरी
duniya ko jab nazdiki se dekha hai

ग़ज़ल

दुनिया को जब नज़दीकी से देखा है

अमित शर्मा मीत

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दुनिया को जब नज़दीकी से देखा है
तब समझा ये सब कुछ खेल-तमाशा है

हाथों की दो-चार लकीरें पढ़ कर वो
मुझ से बोला आगे सब कुछ अच्छा है

उस से बस इक बार मिला पर हैराँ हूँ
दिल में तब से घर कर के वो बैठा है

काग़ज़ पर दिल की तस्वीर बनाई जब
उस ने पूछा ये किस शय का नक़्शा है

सोच रहा हूँ मैं इस का सौदा कर दूँ
उस की यादों का जो दिल में मलबा है

दोनों पहलू में ही हार छिपी इस में
मेरे हाथों में अब ये जो सिक्का है

इस ख़ातिर मैं रोज़ मशक़्क़त करता हूँ
आसानी से क्या हासिल हो पाता है

जब क़ुदरत ने थोड़ा आज नवाज़ा तो
सारे मुझ से पूछे हैं तू कैसा है

'मीत' यहाँ अपने तो नाम के अपने हैं
अन-जानों से रिश्ता दिल का गहरा है