दुख और तरह के हैं दुआ और तरह की
और दामन-ए-क़ातिल की हवा और तरह की
दीवार पे लिक्खी हुई तहरीर है कुछ और
देती है ख़बर ख़ल्क़-ए-ख़ुदा और तरह की
किस दाम उठाएँगे ख़रीदार कि इस बार
बाज़ार में है जिंस-ए-वफ़ा और तरह की
बस और कोई दिन कि ज़रा वक़्त ठहर जाए
सहराओं से आएगी सदा और तरह की
हम कू-ए-मलामत से निकल आए तो हम को
रास आई न फिर आब-ओ-हवा और तरह की
ग़ज़ल
दुख और तरह के हैं दुआ और तरह की
इफ़्तिख़ार आरिफ़