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दुआओं का अपनी असर हर तरफ़ | शाही शायरी
duaon ka apni asar har taraf

ग़ज़ल

दुआओं का अपनी असर हर तरफ़

ख़ुर्शीद सहर

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दुआओं का अपनी असर हर तरफ़
मुनव्वर हैं शाम ओ सहर हर तरफ़

ख़ुशी उस के हमराह रुख़्सत हुई
उदासी गिरी टूट कर हर तरफ़

जिधर जी में आया उधर चल पड़े
मुसाफ़िर का होता है घर हर तरफ़

यूँही अपनी ख़ुश्बू उड़ा चार-सू
हवा की तरह तू बिखर हर तरफ़

थके हौसले बे-सदा रास्ते
तबाही का लम्बा सफ़र हर तरफ़

अँधेरे 'सहर' ता-नशीं हो गए
कि रौशन है मेरा हुनर हर तरफ़