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दिन को कह दें रात हम समझे नहीं | शाही शायरी
din ko kah den raat hum samjhe nahin

ग़ज़ल

दिन को कह दें रात हम समझे नहीं

आमिर मौसवी

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दिन को कह दें रात हम समझे नहीं
आप की ये बात हम समझे नहीं

हम कि इक रेहन-ए-क़फ़स बिस्मिल-नफ़स
आसमाँ हैं सात हम समझे नहीं

क्या समझ में आए ज़ात-ए-मा-सिवा
मा-सिवा-ए-ज़ात हम समझे नहीं

इश्क़ से बाज़ आते हम दीवाने क्या
थी समझ की बात हम समझे नहीं

अल-ग़रज़ है ज़ीस्त मरहून-ए-अजल
ग़ायत-ए-ग़ायात हम समझे नहीं

बात सब की बात से है मुख़्तलिफ़
तेरी 'आमिर' बात हम समझे नहीं