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दिन छोटा है रात बड़ी है | शाही शायरी
din chhoTa hai raat baDi hai

ग़ज़ल

दिन छोटा है रात बड़ी है

शाहीन ग़ाज़ीपुरी

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दिन छोटा है रात बड़ी है
मोहलत कम और शर्त कड़ी है

उस का इशारा पा कर मर जा
जीने को इक उम्र पड़ी है

बंद नहीं सारे दरवाज़े
ख़ैर से बस्ती बहुत बड़ी है

ख़ुश हैं मकीं अब दोनों तरफ़ के
बीच में इक दीवार खड़ी है

जाग रही है सारी बस्ती
और गली सुनसान पड़ी है

हर पल छोटी होती दुनिया
पहले से अब बहुत बड़ी है

दिल में चुभन है हाथ में लेकिन
नाज़ुक सी फूलों की छड़ी है

सहरा कर दिया जिस ने दिल को
सावन की ये वही झड़ी है

जम्अ हुए सब दुख के मारे
जन्नत की बुनियाद पड़ी है

एक दिया है ताक़ में 'शाहीन'
और सिरहाने रात खड़ी है